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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

सुमन ने जिद पकड़ ली थी कि वह राजेश की विधवा रहकर ही अपनी जिंदगी बसर करेगी । सब लोग समझा समझा कर हार गये थे लेकिन वह टस से मस नहीं हुई । उसका कहना था कि प्यार जीवन में एक बार ही होता है । उसे राजेश से हो गया तो हो गया । मन मंदिर में अपने आराध्य की प्रतिमा एक बार ही प्रतिष्ठित होती है , बार बार नहीं । उसने राजेश को अपना पति परमेश्वर मान लिया था । अब और किसी को कैसे माने वह ? पाणिग्रहण संस्कार तो एक रस्म भर है । उसने तो राजेश के साथ मन ही मन में सात फेरे खा लिए थे इसलिए उसे अब सामाजिक "फेरों" की आवश्यकता नहीं थी  । 
सुमन की जिद के सामने किसी की एक ना चली । सुमन के बाबूजी , नई मां, दौलत और दिव्या ने उसे बहुत समझाया कि इतनी बड़ी जिदगी अकेले नहीं कट पाएगी मगर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी । यहां तक कि कुंदन ने भी बहुत समझाया मगर कोई नतीजा नहीं निकला । सुमन अपने इरादों पर अटल चट्टान सी अडिग रही । उसके अटल इरादे देखकर राजेश की मां लीला देवी का हृदय भी द्रवित हो गया और उनके मन में जो उसके प्रति कलुषित भाव थे वे सब भी धुल गए । लीला देवी ने भी उसे अपनी बहू स्वीकार कर लिया । 

सुमन अब दोनों जगह रहने लगी । कुछ दिन अपने ससुराल रहती तो कुछ दिन अपने पीहर में रहती थी । ससुराल में कम रहती थी । वहां उसे राजेश की बहुत याद आती थी । पीहर में शिवम, नेहा और आर्यन के कारण वह बहुत व्यस्त रहती थी । इसलिए वह अधिकांशत: पीहर ही रहती थी । 

शिवम ने सीनियर सैकण्डरी परीक्षा पास कर ली थी । 80% से भी अधिक अंक आये थे उसके । वह अब किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेना चाहता था । दौलत ने उसका एडमिशन जयपुर के महाराजा कॉलेज में करा दिया था । जब शिवम पहली बार घर से निकला था तब सबका कलेजा टूट रहा था । सुमन तो शिवम को छोड़ ही नहीं रही थी । उसने शिवम को एक बुआ की तरह नहीं वरन एक मां की तरह पाला था । नई मां की दुनिया तो वीरान सी हो गई थी । उसकी आंखों का तारा उसकी नजरों से दूर जा रहा था । बेहतर कल के लिए घरवालों को छोड़ना पड़ जाता है । छाती पर पत्थर रखना पड़ता है । शिवम ने इतनी सी उम्र में बहुत कुछ देख लिया था । अपने पराये को वह बहुत अच्छी तरह से जानता था । इसलिए अपने भविष्य को पुख्ता करना उसकी पहली प्राथमिकता हो गई थी । 

सुमन के बाबूजी सुमन का दुख सहन नहीं कर सके । स्त्रियां तो रोकर अपना गम गला लेती हैं लेकिन पुरुषों को तो बचपन से ही यह सिखाया जाता था कि पुरुष रोते नहीं हैं । इस कारण पुरुष मन ही मन गमों की खलिश में तपते रहते हैं । इस कारण उनको डायबिटीज, ब्लडप्रेशर जैसी गंभीर बीमारियां हो जाती हैं । सुमन के बाबूजी को भी ब्लडप्रेशर की बीमारी हो गई । उनका इलाज कराया गया मगर वे बीच मंझधार में सबको छोड़कर स्वर्ग सिधार गये । नई मां इस झटके को सह नहीं कर पाई और बिस्तर में पड़ गई । सुमन नई मां की तीमारदारी में लग गई । कहते हैं कि सेवा का फल तो मिलता है । सुमन की सेवा रंग लाई और नई मां ठीक होकर फिर,से घर का काम करने लगी । 

होनी बड़ी बलवान होती है । भविष्य किसने देखा है ? जैसे ही गाड़ी फिर से पटरी पर आती है वैसे ही कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि पटरी से गाड़ी फिर से उतर जाती है । दिन अच्छे खासे गुजर रहे थे मगर नियति के हाथों कौन बच पाया है ? एक दिन दिव्या की तबीयत खराब हुई तो उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया । उसके सारे टेस्ट हुए तो पता चला कि उसे लास्ट स्टेज का ब्लड कैंसर है और वह केवल दो महीने की मेहमान है । जमाने की यारी ऐसी ही है । एक एक कर सब बिछुड़ रहे थे तो दिव्या का भी नंबर आ गया । नई मां और सुमन दोनों बुरी तरह से टूट गईं थीं । दौलत की दुनिया बरबाद हो गई थी । आर्यन अनाथ जैसा हो गया । शिवम पर तो जैसे वज्रपात हो गया । पहले उसने अपनी मां को खोया था । अब मां समान चाची को खो दिया । तकदीर के आगे सब बेबस हैं । ऐसे अवसरों पर ही इंसान को लगता है कि नियति बहुत प्रबल होती है अन्यथा आज इंसान किसी को कुछ समझता ही नहीं है । 

श्री हरि 
24.5.23 

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3 Comments

Alka jain

04-Jun-2023 12:54 PM

Nice 👍🏼

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वानी

01-Jun-2023 06:55 AM

Nice

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Gunjan Kamal

25-May-2023 05:59 AM

बहुत खूब

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